हिमाचल प्रदेश को "किचन गार्डन" में पाँचवाँ स्थान मिला
शिक्षा मंत्रालय की ओर से हाल ही में जारी की गई यू डाइस रिपोर्ट 2024-25 में प्रदेश सरकार की इस योजना को सराहा गया है
किचन गार्डन का मतलब है
अपने घर के आँगन, छत या खाली स्थान में सब्ज़ियाँ, फल, या मसाले (जैसे धनिया, पुदीना, टमाटर, मिर्च, पालक आदि) उगाना, ताकि उन्हें रोज़मर्रा के खाने में इस्तेमाल किया जा सके।
हिमाचल के स्कूलों में महक रहे "किचन गार्डन", बच्चों को परोसा जा रहा ताजा खाना
हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में एक शानदार पहल रंग ला रही है। राज्य के कुल 14,725 स्कूलों में से 13,307 स्कूलों में अब हरे-भरे किचन गार्डन लहलहा रहे हैं। इस कोशिश में स्कूल मैनेजमेंट कमेटी (SMC) के कार्यकर्ताओं के साथ-साथ बच्चे भी हाथ बंटा रहे हैं और खुद इन बगीचों की देखभाल कर रहे हैं।
देश में हिमाचल का 5वां स्थान
शिक्षा मंत्रालय की ताजा यू-डाइस रिपोर्ट (2024-25) ने भी हिमाचल की इस मेहनत को सराहा है। किचन गार्डन बनाने के मामले में हिमाचल प्रदेश अब देश भर में 5वें स्थान पर पहुँच गया है। इस सूची में लक्षद्वीप (100% स्कूलों के साथ) पहले नंबर पर है, जिसके बाद असम (98.5%), चंडीगढ़ (98.3%) और ओडिशा (97.5%) का नाम आता है। हिमाचल के भी 90% स्कूलों में अब मिड-डे मील के लिए ताजी सब्जियां सीधे इन बगीचों से आ रही हैं।
"आत्मनिर्भर स्कूल" और "स्वस्थ बच्चे" हैं लक्ष्य
स्कूल शिक्षा निदेशक आशीष कोहली ने बताया कि इस पहल का असली मकसद स्कूलों को आत्मनिर्भर बनाना है। उन्होंने कहा, "जब बच्चे खुद अपने हाथों से सब्जियां उगाते हैं और खाते हैं, तो वे पर्यावरण से भी जुड़ते हैं। हमने देखा है कि जिन स्कूलों में ये किचन गार्डन हैं, वहाँ बच्चों का पोषण स्तर तो सुधरा ही है, साथ ही उनकी भोजन में रुचि भी बढ़ी है।"
सबने मिलकर की मेहनत
ये गार्डन किसी एक की नहीं, बल्कि सबकी मिली-जुली कोशिशों का नतीजा हैं। इन्हें तैयार करने में मिड-डे मील वर्करों, स्कूल स्टाफ और खुद विद्यार्थियों ने जमकर मेहनत की है। इसका फायदा दोहरा है: एक तो मिड-डे मील पहले से ज्यादा ताजा और पौष्टिक हो गया है, और दूसरा, बच्चों को खेती-बाड़ी और प्रकृति के बारे में सीखने को मिल रहा है।
इन बगीचों की देखरेख की जिम्मेदारी स्कूल के इको क्लब और प्रबंधन समितियों को दी गई है। इसके लिए इको क्लब के बजट से पैसा भी दिया जा रहा है। साथ ही, पौधों की सिंचाई, खाद और सुरक्षा का भी पूरा ध्यान रखा जा रहा है।
पहले जहाँ मिड-डे मील के लिए बाजार से सब्जियां खरीदनी पड़ती थीं, वहीं अब स्कूल में ही उगी ताजी और जैविक सब्जियां बच्चों की थाली में परोसी जा रही हैं। इससे खाने का स्वाद और उसकी गुणवत्ता, दोनों में बड़ा सुधार आया है।

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